Tuesday, February 22, 2011

बे-मौसम बरसात

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दो-तीन दिनों से कर रहे थे इशारा , और कल गरजे सुबह-सुबह
जैसे मुनादी कर रहे हों , कि हम आ गए हैं और बस शुरू हो गए बरसना ...
कल दिन भर बादल कुछ ऐसे बरस रहे थे , जैसे कुछ हिसाब रहा गया था
जिसे पूरा करना था , कल का दिन फ़रवरी का नहीं था ...

[1]
एक बादल रहता है ,
दिल के कोने में ....
कल वो फिर गुजरे दिल के रस्ते से,
और जाते-जाते
उस बादल को बरसा गए ।
सुखाया था इक दर्द ,
रोज़मर्रे की धूप में,
इस बेमौसम बरसात ने
उसे फिर से गीला कर दिया ....

[2]
जहां कभी लिखी थी मैंने , कुछ पत्तों पर  कहानियाँ
वो पूरी बगिया ही मुझे झाड़-झंखाड़ सी लगी
तब झाड़ा था मैंने उन सूखे दर्दीले पत्तों को ,
कुछ आशाएँ डाली थी मैंने क्यारियों में,
और कई दिनों  'खुद' से सींचा था... 
अभी आए ही थे कुछ फूल उम्मीदों के,
नई उमंगों के बस बौर फूटे थे,
तभी क़िस्मत के बादलों ने
ढंका ये बासंती मंज़र ,
बेवक्त हुई  बारिश से ,
पूरा सपना ही बह गया ...

[3]
मैं दुखी हूँ,
क्यूंकि बेवक्त बरस गया एक बादल ,
मैं  रोता हूँ उन चंद बासंती लम्हों के लिए
जो इस बरसात में भीग , गल गए,
बेवजह का रोना है मेरा  ,
क्यूंकि वो लम्हे  बस खो गए हैं रस्ते में ,
फिर  मिल जाएँगे अगले मोड़ पर ,
न भी मिले,  तो  और भी कई ग़म हैं,  वजहें हैं  ...
पर वो क्या करे ?
जिसके खेत में बादल बरस गया बेमौसम,
जहां   बरसात ने बहाया और सड़ाया 
बीजों को, जिन्हें बोया था पसीने ने...
वो क्या करे ?
जिसकी  साल भर की कमाई,
बोरों में भरे-भरे , बरसात को प्यारी हो गई
उसका बसंत तो बहुत-बहुत दूर चला गया होगा ....
हो सकता है हमेशा के लिए ….
......रजनीश (21.02.2011)

6 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

जहां बरसात ने बहाया और सड़ाया
बीजों को, जिन्हें बोया था पसीने ने...
वो क्या करे
बेहतरीन पंक्तियां....

सुखाया था इक दर्द ,
रोज़मर्रे की धूप में,
इस बेमौसम बरसात ने
उसे फिर से गीला कर दिया ....

बहुत खूबसूरत और साथ ही दर्द भरी पंक्तियां...

इतनी सुंदर रचनाओं के लिए बधाई...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जिसके खेत में बादल बरस गया बेमौसम,
जहां बरसात ने बहाया और सड़ाया
बीजों को, जिन्हें बोया था पसीने ने...
वो क्या करे ?
जिसकी साल भर की कमाई,
बोरों में भरे-भरे , बरसात को प्यारी हो गई
उसका बसंत तो बहुत-बहुत दूर चला गया होगा ....
हो सकता है हमेशा के लिए ….
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किसान के मन की व्यथा कथा ...... कितनी सुंदर ढंग से सामने रखी आपने......

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

रचना के तीनो खंड बहुत ही भावपूर्ण एवं ह्रदयश्पर्सी...

तीसरा खंड लोकोन्मुख एवं बहुत ही मार्मिक

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

mridula pradhan said...

सुखाया था इक दर्द ,
रोज़मर्रे की धूप में,
इस बेमौसम बरसात ने
उसे फिर से गीला कर दिया ....
wah.bar-bar padhne ke layak, bahut hi bhawbhini kavita.

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत अच्छी लगी सर ! आपकी यह कविता.


सादर

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....