Thursday, August 4, 2011

मंज़िल

021209 206

आओ उस ओर चलें
जीवन की धारा में
हँसते हुए , दुखों को साथ लिए
आओ चलें ,
थामे हाथ , एक स्वर में गाते
एक ताल पर नाचते पैर
 बैठें उस नाव में और बह चलें
आओ उस ओर चलें

आओ चलें
पार करें मिलकर वो पहाड़
जो फैलाए सीना रोज शाम
सूरज को छिपा लेता है अपने शिखर के पीछे
आओ चलें
लांघें उसे क्यूंकि उसके पीछे ही है
 मीठे पानी की झील
आओ उस ओर चलें

कांटो से होकर खिलखिलाते फूलों की ओर,
आओ चलें उस मंजिल की ओर
जो जीवन में ही समाई है ,
कहीं दूर नहीं बस उन तूफानों और बादलों के बीच,
आओ उस ओर चलें
....रजनीश

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12 comments:

ana said...

aapki rachana man ko chhoo gayi

संजय भास्‍कर said...

वाह बेहतरीन !!!!
अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद.....रजनीश जी

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर... बधाई

रचना दीक्षित said...

लजवाब अभिव्यक्ति.सच ही है चलना ही जिंदगी है.बस यूँ ही सुख दुःख सब साथ लिए चलते रहना ही जीवन है

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत खूबसूरत...

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

रश्मि प्रभा... said...

sab milker saath chalen...

Dorothy said...

गहन भाव समेटे बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

अनामिका की सदायें ...... said...

khoobsurat abhivyakti.

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi......

Roshi said...

sunder bhavvvv.........

Anonymous said...

Very informative post. Thanks for taking the time to share your view with us.

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