Sunday, November 20, 2011

दास्ताँ - एक पल की

DSCN4962
कुछ रुका सा कुछ थका सा
कुछ  चुभा सा कुछ फंसा  सा
ये पल लगता है ...

कुछ बुझा सा कुछ ठगा सा
कुछ घिसा सा कुछ पिसा सा
ये पल लगता है  ...

कुछ गिरा सा कुछ फिरा सा
कुछ दबा सा कुछ पिटा सा
ये पल लगता है ...

दिल में है कुछ बात
जो इस पल से हाथ मिला बैठी
हाथ न आएगा अब जरा सा
ये पल लगता है ...

धूप ठहरती नहीं
न ही रुक पाती है रातें
गुजर जाएगा झोंका निरा सा
ये पल लगता है ...
.....रजनीश ( 20.11.2011)

21 comments:

रश्मि प्रभा... said...

kyun lagta hai sabko aisa ....

Onkar said...

bahut sundar abhivyakti

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

M VERMA said...

भावपूर्ण ....

रविकर said...

छाई चर्चामंच पर, प्रस्तुति यह उत्कृष्ट |
सोमवार को बाचिये, पलटे आकर पृष्ट ||

charchamanch.blogspot.com

अनुपमा पाठक said...

पल की दास्तान का सुंदर सच्चा बयान!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पल पल ऐसा ही लगता है ..सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब, सब बहाये लिये जा रहा है, समय का प्रवाह।

रेखा said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति ..

Sunil Kumar said...

पल की दास्तान ........

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 22/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या खूब आदरणीय रजनीश भाई...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
सादर...

Anita said...

जब जब ऐसा लगता है.. भीतर कोई तकता है

कुमार संतोष said...

वाह क्या खूब लिखा है !!

Saru Singhal said...

bahut khoob...

Jeevan Pushp said...

बहुत ही सुन्दर !

Vandana Ramasingh said...

बढ़िया रचना

सागर said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति ..पलो की दास्तान....

आशा बिष्ट said...

kuch pal sachmuch aise hote hai......behad sundar..........

poonam said...

bvahut khub..

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....