Saturday, December 31, 2011

स्वागत ! नव वर्ष



आओ  नव वर्ष 
है स्वागत तुम्हारा 
हो तुम मुबारक 
ये सपना हमारा 

लड़ेंगे न भिड़ेंगे 
न ही दंगे करेंगे 
भाईचारे के साथ
प्रेम की राह हम चलेंगे

न लुटेगा कोई 
न भूखा रहेगा 
न ही भटकेगा कोई 
न तन्हा रहेगा 

बन जाएगा जीवन
गुलशन हमारा 
हो तुम मुबारक 
ये सपना हमारा 

पानी तुम लाना 
बाढ़ पर न देना 
न लाना तूफ़ान 
भूकंप तुम न देना 

जलाए ना सूरज 
जमाए ना ठंड  
मौसम बदलना
पर मौत तुम न देना 

प्रेम पर्यावरण से
वचन ये हमारा 
हो तुम मुबारक 
ये सपना हमारा 

है पता तुम हो भोले 
तुम झरने का जल हो
विनाश तुम नहीं 
तुम सुंदर कमल हो

हो दर्पण तुम्हारी देह पर 
हमारी ही छाया  
शुभाशुभ तुम्हारा चेहरा 
हमारी ही माया 

दो आशीष हमको 
चित्त शुद्ध हो हमारा 
हो तुम मुबारक 
ये सपना हमारा 


आओ  नव वर्ष 
है स्वागत तुम्हारा 
हो तुम मुबारक 
ये सपना हमारा ....
...रजनीश ( 31.12.2011)
नव वर्ष  2012 की  हार्दिक शुभकामनाएँ । 
नूतन वर्ष  मंगलमय  हो ।

Tuesday, December 27, 2011

बदलता हुआ वक़्त


महीने दर महीने 
बदलते कैलेंडर के पन्ने 
पर दिल के कैलेंडर में 
 तारीख़ नहीं बदलती  

भागती रहती है घड़ी 
रोज देता हूँ चाबी 
पर एक ठहरे पल की 
किस्मत नहीं बदलती   

बदल गए घर 
बदल गया शहर 
बदल गए रास्ते 
बदला सफर 

बदली है शख़्सियत
ख़याल रखता हूँ वक़्त का 
बदला सब , पर वक़्त की 
तबीयत नहीं बदलती 

कुछ बदलता नहीं 
बदलते वक्त के साथ 
सूरज फिर आता है 
काली रात के बाद 

उसके दर पर गए 
लाख सजदे किए 
बदला है चोला पर 
फ़ितरत नहीं बदलती

क़यामत से क़यामत तक 
यूं ही चलती है दुनिया 
चेहरे बदलते हैं पर 
नियति नहीं बदलती ...
रजनीश (27.12.2011)
एक और साल ख़त्म होने को है पर क्या बदला , 
सब कुछ तो वही है , बस एक और परत चढ़ गई वक़्त की ....

Sunday, December 25, 2011

सीटी

बचपन में हमने जब सीटी बजाई 
डांट भी पड़ी थोड़ी मार भी खाई 

होठों को गोलकर 
मुंह से हवा छोड़ना 
किसी गाने की लय 
से लय जोड़ना 

क्या गुनाह है 
अपनी कलकारी दिखाना 
इन्सानों को सीटी की 
प्यारी धुन सुनाना 

फिर कहा किसी ने 
 कला का रास्ता मोड़ दो 
शाम ढले खिड़की तले 
तुम सीटी बजाना छोड़ दो 

अब हम क्या कहें आप-बीती 
कभी ढंग से न बजा पाये सीटी 
कभी वक्त ने तो कभी औरों  ने मारा
अक्सर हो मायूस दिल रोया हमारा 

पर मालूम था अपने भी दिन फिरेंगे 
कभी न कभी अपने दिन सवरेंगे 

समाज सेवकों को हमारी बधाई 
हमारी आवाज़ संसद तक पंहुचाई 
आज कल खुश है अपना दिल 
आने वाला है व्हिसल-ब्लोअर्स बिल !
जब कानून होगा साथ 
फिर क्यों चुप रहना 
अब खूब बजाएँगे सीटी 
किसी से क्या डरना !
.....रजनीश (25.12.2011)

MERRY CHRISTMAS 
  
 

Friday, December 23, 2011

प्यार की राह


एक राह 
खोई सी कोहरे में 
इक राह 
कहीं छुप जाती है 
धरती पर उतर आए 
सफ़ेद बादलों के छुअन सी 
एक पदचाप सुन 
एक राह फिर  जी उठती है 
कुछ कदम 
और चले जाते हैं 
कोहरे में 
और राह फिर लौट आती है ...

एक राह 
शुरू  होती है सपनों में 
दिल से होकर जाती है 
जब-जब मिलती हैं 
आँखों से आंखे 
इस राह में कलियाँ मुसकुराती हैं ...

जब होते हैं हाथों में हाथ 
और दिल से जब 
दिल करता है बात 
इस राह में 
दौड़ते हैं कुछ जज़्बात 
पार करते मीलों के पत्थर 

एक राह रुकती नहीं 
ठहरे हुए वक्त में 
जब अपना वजूद खोता एक आगोश 
सुनता है धड़कनों के गीत 
राह नाचती है 

एक राह 
कब रात से होकर दिन
और दिन से रात में चली जाती है 
बढ़ते कदमों को
 खबर नहीं होती 

इस राह पर 
फूलों को देखा नहीं मुरझाते कभी 
तितलियाँ  नहीं सुस्ताती कभी
चाँदनी का एहसास 
सूरज की किरणों के बीच भी 
कदम -कदम पर 
राह में रहता है मौजूद 
अलसाती नहीं कोई शाम 
और खुशनुमा मौसम 
कभी बदलता नहीं 
मुसकुराते आंसू 
और पग पग पर 
बिखरे मोतियों से चमकती 
ये राह कभी थकती नहीं 

प्यार की राह 
ऐसी ही होती है ...
...रजनीश (23.12.2011)

Wednesday, December 21, 2011

प्यार भरी बातें


हो दिन या हो रात 
है प्यारा साथ तुम्हारा 
प्यार ही प्यार हो तुम
देखा प्यार तुम्हारा

बड़ी अच्छी लगती हैं 
बातें प्यार की और प्रिय.. तुम  
बड़े अच्छे लगते हैं 
ये धरती ,नदिया ये रैना और .. तुम 

इंतज़ार प्रियतम का 
बिछोह सहा ना जाए 
जो मिल जाएँ सनम 
तो फूल  भी गुनगुनाएँ 

ये सब प्यार की बातें 
ये प्यार भरी बातें 
इज़हार की बातें 
इकरार की बातें 
वफ़ादारी की दास्तान 
और बेवफाई की बातें 

प्यार भरी लाइनों को 
चाहता है पढ़ना हर कोई 
प्यार में डूबे शब्दों को 
पी लेना चाहता है हर कोई 

प्यार पर कुछ लिखा
तो शब्दों में रस घुले 
लोग पढ़ें , दाद दें 
सपनों की दुनिया में चलें 

प्यार प्रधान है जीवन हमारा 
प्यार आधार प्यार मक़सद हमारा 
इसलिए अच्छी लगें बातें प्यार की
करो प्यार, ना मिलेगी ज़िंदगी दोबारा 
...रजनीश (21.12.2011)

Monday, December 12, 2011

दिल का रिश्ता


आज छूकर देखा 
कुछ पुरानी दीवारों को 
सीलन भरी 
जिसमें दीमक के घरों से
बनी हुई थी एक तस्वीर
बीत चुके वक्त की 

आज एक पुराने फर्श पर
फैली धूल पर चला 
उस परत के नीचे
अब भी मौजूद थे 
मेरे चलने के निशान
कुछ जाले लिपट गए
मेरे हाथों से 
मकड़जालों के पीछे 
अब भी जीवित था 
अपनापन लिए एक मकान

धूल झाड़ी
जालों को हटाया
सो रही दीवारों को झिंझोड़ा
किए साफ कुछ वीरानगी के दाग
बिखरे हिस्सों को समेटा
 कुछ परतों को उखाड़ा

और पुराना वक्त 
फिर लौट आया 
दीवारों पर उभरे 
कुछ चेहरे 
जी उठी दीवार
सांस लेने लगी जमीन 
परदों से झाँकने लगे 
पुराने सपने 
कुछ पुरानी ख्वाहिशें 
कुछ पुराने मलाल 
खट्टी-मीठी यादों की गंध 
फैल गई हर कोने 

दिल का रिश्ता 
सिर्फ दिल से ही नहीं 
दीवारों से भी होता है ..  
रजनीश (12.12.2011)   

Sunday, December 11, 2011

चंद्र ग्रहण

कुछ यूं 
हुआ था चाँद के साथ
कि चलते चलते
 कुछ पल चाँद खो गया था,
पूनम की रात 
चाँद के बिना 
सेज पर इंतज़ार करती रही 
दुल्हन की तरह 
कुछ पलों को जलती रही 
था मजबूर चाँद 
ये वफ़ा थी रस्तों से 
एक करार  था 
सफर के साथियों से  
उसे निभाना था
जो डगर थी उसपर 
ही जाना था ,

रास्ते  ही कुछ
 ऐसे होते  हैं 
कि कभी कभी 
अपना वजूद 
ही गुम जाता है 
खो जाती है मुस्कुराहट 
साथ निभाते-निभाते 
उखड़ जाते हैं पैर 
और दिल भी टूट जाता है, 

वक्त की आंधी के बाद 
पर  चाँद फिर से 
 निकल अंधेरे से 
चाँदनी का घूँघट 
हौले से हटाता है 
और  मीठा सा 
अहसास होता है 
कि दर्द भरा पल 
जो ठहरा सा लगता है 
सदा साथ नहीं रहता 
गुजर ही जाता है 
....रजनीश (11.12.11)

Saturday, December 3, 2011

आमंत्रण

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घूमती है धरा सूरज के चहुं ओर
चंदा लगाता है धरा के फेरे
पेड़ करते हैं जिसे छूने की कोशिश 
मुंह किए रहती है सूरजमुखी
उस सूरज की ओर

उड़ते है पंछी बहता है पानी
चलती है हवा होती है बरखा
बदलते हैं मौसम
हर कोने पर  होती है
बीतते समय की छाप
जो लौट लौट कर आता है
एक निरंतरता और
एक पुनरावृत्ति
एक नाद जिसकी अनुगूँज हर कहीं
एक स्वर लहरी जो बहती है हर कहीं
सूरज चाँद तारे और धरा
कोई तारा टूटा तो कोई तारा जन्मा
सभी करते नृत्य निरंतर
गाते हैं सभी
ब्रम्हान्डीय संगीत ...

इधर हम धरा के सीने में
अपना शूल चुभाते 
पानी की दिशा मोड़ते
पंछियों के घर तोड़ते 
फैलाते हैं दुर्गंध  और कोलाहल
हम सूरज के साथ नहीं चलते
हमारी दिशा विनाश की दिशा है
हमारा रास्ता विध्वंस का है
जैसे हम इस सुर-संगम का हिस्सा नहीं !

अच्छा लगता है
हमें कृत्रिम वाद्यों की धुन पर
गाना और  नाचना
क्यूंकि  होते हैं हम उस वक्त
प्रकृति के करीब उसी के अंश रूप में
एक क्षणिक आनंद
और फिर से नीरस दिनचर्या
हमें एहसास नहीं
निरंतर गूँजते
संगीत का 
क्यूंकि  हमने रख लिए हैं
 हाथ कानों पर
और पैरों में बेड़ियाँ डाली हैं
हमारे पाँवों को
 नहीं आता थिरकना
प्रकृति के सुर, लय और ताल पर
जो जीवित है गुंजायमान है
हर क्षण और हर कण में

आओ, अपना रास्ता मोड़ लें हम
प्रकृति के साथ प्रकृति की ओर आयें
नैसर्गिक संगीत में हरदम थिरकें
और  उत्सव का हिस्सा बन जाएँ  ...
....रजनीश (03.12.2011)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....