Monday, February 13, 2012

एक नज़्म की कहानी

एक नज़्म लिखी थी 
उस पन्ने पर 
जो दिल में 
कोरा पड़ा था 
पर कुछ शब्द 
नहीं थे पास मेरे 
कुछ लाइनें अहसासों में 
अटक गईं थीं 
लिखते लिखते ही 
पन्ना गुम 
गया था रद्दी में 
कलम भी खो गई थी 
हिसाब-किताब में 

पलाश फिर दिखा 
खिड़की से 
रद्दी से फिर 
हाथ आ गया
वही पन्ना 
उस नज़्म के दिन 
लौट आए हैं ... 
रजनीश (13.02.2012)

11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रकृति भी अपना सफेद रंग तज रही है...वाह..

vandana gupta said...

उस नज़्म के दिन
लौट आए हैं ... बहुत खूब्।

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत खूब सर!


सादर

vidya said...

बहुत सुन्दर....
दोनों हाथों से समेट लिया जाये इन दिनों को..

Kailash Sharma said...

बहुत सुंदर रचना...

विभूति" said...

बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

Aditya said...

adhoori nazm ka bhi alag hi mazaa hai sirji :)


palchhin-aditya.blogspot.in

Anupama Tripathi said...

सुंदर भाव ....

Madhuresh said...

Khoobsoorat abhivyakti hai!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत नज़्म

mridula pradhan said...

wah....bahut sunder.

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....