Sunday, June 17, 2012

उमस







बारिश की बूंदें
गरम तवे सी जमीं पर
छन्न से गिर गिर
भाप हो जाती हैं

हवा की तपिश
हवा हो जाती है
पहली बारिश में
जैसे कोई अपना
बरसों इंतज़ार करा
छम्म से सामने
आ गया हो अचानक

बह जाती है सारी जलन
बूंदों से बने दरिया में
पर तपिश की जगह
बैठ जाती है आकर
एक बैचेनी एक तकलीफ
जैसे एक रिश्ता दे रहा हो
आँखों को ठंडक
छोड़ दिल में एक भारीपन
रिश्तों की उमस का एहसास
बारिश के दिनों
बार बार होता रहता है

जिन्हें बुलाया था
मिन्नते कर
उन्हीं बादलों के
छंटने का इंतज़ार
कराती है एक उमस
बरसात के दिनों
और रिश्तों की उलझनों में

जो देता है ठंडक
वही उमस क्यूँ  देता है...
.....(रजनीश 17.06.12)





10 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत बेहतरीन रचना,,,
,,
रजनीश जी,मै कई बार आपकी पोस्ट गया,किन्तु आप मेरे पोस्टो पर नही आये,जब कि आप दूसरों से अपने पोस्ट पर आकर टिप्पणी की आशा रखते है,तो हर टिप्पणी कार भी आपसे यही आशा रखता है,इसे अन्यथा न ले,शिष्टाचार के नाते ही सही टिप्पणी लौटाना चाहिए,,,,,,

RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

प्रवीण पाण्डेय said...

पानी के पहले की प्यास है यह..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर रचना...
"उसी से ठंडा उसी से गरम" याद आ गया...
सादर.

Onkar said...

आपकी अंतिम पंक्ति ने गज़ब ढा दिया

mridula pradhan said...

bahot sunder......

ANULATA RAJ NAIR said...

जाने क्यूँ रिश्तों में यूँ दर्द क्यूँ होता है....

बहुत सुन्दर रजनीश जी....
सादर

अनु

Darshan Darvesh said...

बेहतरीन !

रचना दीक्षित said...

गर्मी का गभीर प्रकोप और वारिश की छीटें.

वाकई ठंडक पहुंचाती कविता.

Kailash Sharma said...

बहुत खूब ! रिश्तों में उमस सच में बहुत दिल को दुखाती है..लाज़वाब प्रस्तुति....

indu chhibber said...

yahi to problem hai-thandak dundho to tapish bhi milti hai

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....