तू जब भी मुझसे मिले ऐसे
मिले
ज्यों रात चाँद चाँदनी
से मिले
तू जब भी मुझसे...
हुई जब भी आहट तेरे आने
की
पन्नों के बीच दबे फूल
खिले
तू जब भी मुझसे...
तेरी आवाज़ जब भी सुनता
हूँ
लगे है बंसरी को जैसे सुर
हो मिलें
तू जब भी मुझसे...
जो फ़ासला था वो फ़ासला ही रहा
दो पटरियों की तरह संग चले
तू जब भी मुझसे...
तेरे खयाल जब भी दिल से
बात करें
तेज़ बारिश हो आंधियाँ भी
चलें
तू जब भी मुझसे मिले ऐसे
मिले
ज्यों रात चाँद चाँदनी
से मिले
........रजनीश ( 31.08.2013)